फिरोजाबाद नगर निगम में शामिल गांवों की हालत बदतर — टापा खुर्द सहित कई इलाकों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव
फिरोजाबाद | विशेष रिपोर्ट
नगर निगम में शामिल हुए वर्षों बीत चुके हैं, लेकिन फिरोजाबाद के टापा खुर्द जैसे कई गांव अब भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं। नाम तो ‘नगर निगम’ का है, लेकिन सुविधाएं आज भी कागज़ों में कैद हैं। ग्रामीण इलाकों में आज भी पानी, सफाई और कूड़ा निस्तारण जैसी बुनियादी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।
पानी की व्यवस्था बदहाल
गांवों की गालियों में पाइपलाइन तो बिछा दी गई, लेकिन नलों से पानी नहीं टपकता। महिलाएं आज भी ‘बरी के नीचे टंकी’ से पानी भरने को मजबूर हैं। कई परिवार प्राइवेट सबमर्सिबल से पानी खरीदने को मजबूर हैं और महीने का ₹500 से ज्यादा खर्च कर रहे हैं।
कूड़े की गाड़ी कभी आती है, कभी नहीं
घर-घर से कूड़ा उठाने वाली गाड़ी पहले रोज आती थी, लेकिन अब दो से तीन दिन तक नदारद रहती है। इससे लोग सड़क पर कूड़ा फेंकने को मजबूर हैं। सूखा-गीला कूड़ा अलग रखने की योजना भी निष्क्रिय हो चुकी है।
नालियां बंद, गंदगी का अंबार
गांव की गलियों और मुख्य मार्गों की नालियां गंदगी से भरी हैं। खाली प्लॉट जलभराव और कचरे के अड्डे बन गए हैं। बरसात में जलभराव और गंदा पानी लोगों के घरों में घुसने लगता है।
गांव की महिलाएं बोलीं – ‘विकास के नाम पर केवल वादे हुए’
गांव की सुषमा, काजल, विमलेश, संगीता, स्नेहलता, राजकुमारी और रेखा देवी ने संवाद के दौरान बताया कि नगर निगम में आने से न तो पानी मिला, न ही साफ-सफाई। कई इलाकों में तो स्वास्थ्य सेवाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। आशा कार्यकत्री की तैनाती नहीं है, और स्वयं सहायता समूहों को भी नजरअंदाज किया जा रहा है।
स्थानीयों की मांग – “कम से कम पीने का पानी तो मिले!”
ग्रामीणों का साफ कहना है कि निगम अगर कुछ नहीं कर सकता तो कम से कम हर घर तक शुद्ध पेयजल ही पहुंचा दे। यह न्यूनतम सुविधा भी अगर सुनिश्चित नहीं की जा सकी, तो नगर निगम में शामिल होने का लाभ क्या?